नीलकंठ वर्णी (Nilkanth Varni History in Hindi) का जन्म 1781 स्थान उत्तर प्रदेश माना जाता है जब इनका जन्म हुआ तो जो ज्योतिष ने देखा कि इनके पैर में कमल के फूल का निशान है इस समय उस ज्योतिष ने यह भविष्यवाणी करी की आने वाले समय में यह बच्चा लोगों के जीवन में परिवर्तन का महत्वपूर्ण योगदान देगा |
ज्योतिष ने उस समय यह बताया कि आने वाले समय में इसके कई भक्त होंगे और इसकी दिशा और दशा तय करने में स्वामीनारायण का योगदान होगा 11 वर्ष की आयु में ही है घर छोड़कर भारत घूमने के लिए निकल पड़े थे यहीं से नीलकंठ वाणी की कहानी और कथा व इनके जीवन चरित्र का शुभारंभ हुआ था | इनके समय में बड़े-बड़े राजा जैसे महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी, पृथ्वीराज चौहान, जैसे बड़े योद्धा पैदा हुए परंतु नीलकंठ वर्णी का इतिहास सबसे अलग माना जाता है |
Nilkanth Varni-नीलकंठ वर्णी कौन थे(स्वामीनारायण का इतिहास)
नाम | घनश्याम पांडे | |
अन्य नाम | भगवान स्वामीनारायण या सहजानंद स्वामी, वर्णीराज | |
जन्म तिथि | 3 अप्रैल 1781. |
जन्म स्थान | गोंडा ज़िले के छपिया ग्राम में | |
मृत्यू तिथि | 1 जून 1830. |
मृत्यू स्थान | गढ़ादा | |
पिता का नाम | श्री हरि प्रसाद राय | |
माता का नाम | भक्ति देवी | |
मृत्यू के समय आयु | 49 वर्ष | |
Nilkanth Varni History in Hindi-नीलकंठ वर्णी की कहानी
नीलकंठ वाणी का जन्म उत्तर प्रदेश ब्राह्मण परिवार में हुआ था नीलकंठ वर्णी स्वामीनारायण का असली नाम घनश्याम पांडे रखा गया था और इनका नामकरण इनके पिता के द्वारा हुआ था 5 वर्ष की आयु में इनकी शिक्षा शुरू हो गई और 11 वर्ष की आयु में इन्होंने जनेऊ धारण कर लिया | शास्त्रों में इनकी गहरी रुचि थी और 11 वर्ष की आयु तक इन्होंने कई मुख्य शास्त्रों का अध्ययन कर लिया था |
बचपन में ही इनके सिर से माता पिता का साया उठ गया था कहा जाता है कि किसी बात को लेकर इनके भाई और नीलकंठ वाणी अर्थात स्वामीनारायण के बीच झगड़ा हो गया जिस कारण से घनश्याम पांडे घर को त्याग करके भारत भ्रमण की ओर निकल पड़े यहीं से इनके जीवन की यात्रा प्रारंभ हुई |
आषाढ़ मास वर्ष 1792 ईस्वी में नीलकंठ वर्णी स्वामीनारायण बनने के लिए वर्षा काल में सरयू नदी के किनारे से गुजर रहे थे उस समय रास्ते में एक तांत्रिक ने उस बालक को देखा और उस तांत्रिक ने सरयू नदी की तेज धाराओं में नीलकंठ वाणी को फेंक दिया तांत्रिक को यह लगा कि यह मर चुका है और वह जोर-जोर से हंसने लगा तूफान जोर से चलने के कारण पेड़ तांत्रिक के ऊपर गिरा और मौके पर उसकी मृत्यु हो गई | इस परिस्थिति में घनश्याम पांडे एक किनारे पर जा पहुंचे | इस समय उन्होंने अपना नाम बदलकर घनश्याम पांडे से नीलकंठ वर्णी रख लिया |
Nilkanth Varni-नीलकंठ वर्णी की मानसरोवर यात्रा
जब नीलकंठ वाणी जी मानसरोवर यात्रा कर रहे थे तो पंजाब के शासक रणजीत सिंह और नीलकंठ वाणी अर्थात स्वामी नारायण जी का उनके साथ मिलन हुआ नीलकंठ वाणी जी को अपने सामने देखकर रणजीत सिंह बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने अपना सब कुछ त्याग कर उनकी सेवा करने का निर्णय लिया लेकिन नीलकंठ वाणी ने उन्हें समझाया कि कि तुम जनता की सेवा के लिए पैदा हुए हो तुम्हें अपना कर्तव्य हर वक्त निभाना चाहिए |
रणजीत सिंह नीलकंठ वाणी जी के पैरों में गिर गए और उनके साथ हमेशा रहने की आज्ञा मांगी लेकिन नीलकंठ वाणी जी ने कहा कि तुम मेरे साथ नहीं रह सकते आपको अपने कर्तव्य का पालन करना होगा और उन्होंने रणजीत सिंह को कहा कि मैं आपको पुनः मिलूंगा |
हरिद्वार में हर की पौड़ी पर राजा रणजीत सिंह स्वामी नारायण जी की भेंट हुई स्वामीनारायण अपने सामने रणजीत सिंह को देखकर बहुत प्रसन्न हुए उन्होंने फिर से आग्रह किया कि मैं अपना सब कुछ त्याग कर आप की सेवा करना चाहता हूं परंतु नीलकंठ वाणी जी ने उन्हें समझाया कि तुम्हें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए|
नीलकंठ महादेव जी ने 7 वर्ष और 11 दिनों तक अपनी यात्रा की और उनकी यात्रा का अंतिम गांव लॉज था उन्होंने अपना ज्यादातर समय रामानंद स्वामी के साथ बिताया जैसे-जैसे समय बीतता गया रामानंद स्वामी की मृत्यु हो गई अंत में जब जब मानव जाति को कल्याणकारी साधु-संतों की आवश्यकता होगी तो मैं जन्म लेता रहूंगा यह कहकर स्वामीनारायण गढ़ादा नामक स्थान पर उन्होंने 1 जून 1830 को ध्यान मग्न हो गए और ध्यान में ही अपने प्राण त्याग दिए |
Nilkanth Varni-स्वामीनारायण के मुख्य मंदिर
स्वामीनारायण मंदिर | छपिया, गोंडा | |
स्वामीनारायण मंदिर | भुज, गुजरात | |
स्वामीनारायण मंदिर | अहमदाबाद गुजरात | |
स्वामीनारायण मंदिर | धोलका | |
स्वामीनारायण मंदिर | धोलेरा | |
स्वामीनारायण मंदिर | जूनागढ़ | |
स्वामीनारायण मंदिर | जेतलपुर | |
स्वामीनारायण मंदिर | मुली | |
स्वामीनारायण मंदिर | गढ़डा | |
स्वामीनारायण मंदिर | वड़ताल | |
नीलकंठ वर्णी किसका अवतार है?
नीलकंठ वाणी से ही स्वामीनारायण का नाम निकला है नीलकंठ वाणी जी 11 वर्ष की उम्र में ही भारत की यात्रा करने के लिए निकल चुके थे उन्होंने भारत भर की यात्रा 7 साल मैं पूरी करी इस तीर्थ यात्रा के बीच स्वामी नारायण जी को अनेक परिस्थितियों से गुजरना पड़ा इन परिस्थितियों के कारण इनके जीवन में बहुत से बदलाव आए |
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